परिचय (Introduction)

पंचाँग पद्धति प्राचीन भारतीय काल गणना एवं ज्योतिष का ही एक व्यवस्थित एवं विकसित स्वरूप है। वस्तुत: वर्तमान पंचाँग भारतीय ज्योतिष के विभिन्न अँगों ( तिथि, वार, नक्षत्र, योग, ग्रह - संचार, सूर्यादि ग्रहण विवरण आदि) को एक ही स्थान में समाहित (संयोजित) करने का कार्य करता है । ईसवी पूर्व वैदिक एवं पौराणिक काल में ही विवाह, पूजा-पाठ एवं यज्ञ-अनुष्ठानादि- प्रत्येक शुभ कार्य के आरम्भ करने से पूर्व शुभ संकल्प करने का विधान है। शुभ कार्यों के संकल्प में संवत् नाम, अयन, ऋतु मास, पक्ष-तिथि, वार, राशि, नक्षत्र आदि का उच्चारण आवश्यक माना जाता है। पंचाँग में इन सब तत्त्वों का विवरण अवश्य मिलता है। भारतीय ज्योतिष-गणना में काल गणना की सूक्ष्म प्रणाली का विशेष वर्णन मिलता है। जिसमें शून्य से लेकर करोड़ों, अरबों एवं खरबों तक की संख्याओं का वर्णन मिलता है। काल व्यवस्था को दर्शाने के लिए भारतीय पंचाँगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। पंचाँग में वर्णित उत्तरायण, दक्षिणायन, गोलार्द्ध, वसन्तग्रीष्मादि षड्ऋतुएँ, सम्वत् मास, चान्द्रकृष्ण पक्ष, पूर्णिमा, अमावस, एकादशी आदि तिथियों, वार, नक्षत्र, योग, ग्रह संचार, सूर्य चन्द्रादि ग्रहण, शुभ विवाहादि मुहूर्त्त, पर्व-त्यौहार आदि के वर्णन प्राचीन गौरवमयी वैदिक संस्कृति, सभ्यता के महत्त्वपूर्ण पक्षों की अभिव्यक्ति करते हैं। पंचाँग मात्र तिथि, वारादि दर्शाने वाला कैलेण्डर नहीं है, अपितु इसमें प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का स्वरूप हमारे सभी पर्व-त्यौहारों आदि में स्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित होता है। प्राय: सभी भारतीय पर्व-त्यौहार, तिथि, वार, नक्षत्रादि पर आधारित होते हैं जिनका वैज्ञानिक एवं गणितीय वर्णन एक स्तरीय पंचाँग में अवश्य रहता है।

इतिहास (History)

सन् 1875 ई० में जब हमारे प्रपितामह पूजनीय पण्डित देवी दयालु जी ने लाहौर (पाकिस्तान) में पंचाँग दिवाकर (पत्रिका) का शुभारम्भ किया, उस समय भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का कुशासन चल रहा था। 17वीं शताब्दी एवं उससे पूर्व के अनेक वर्षों से भारत के लोग हूणों, यहूदियों, यवनों, मुगलों आदि विदेशी लुटेरों के जुल्मों-सितम से संत्रस्त, नैराश्य एवं संघर्ष की स्थिति में थे। 18वीं शताब्दी में अधिकांश लोग ब्रिटिश साम्राज्य के शोषण के कारण परेशान एवं दु:खी थे। सामाजिक एवं राजनीतिक वातावरण अशान्त एवं संघर्षपूर्ण था । पराधीनता के कारण अधिकांश लोग आस्तिकता की भावनाओं से विमुख हो रहे थे । यद्यपि भारत के अनेक भागों से स्वतन्त्रता एवं क्रान्ति के स्वर उभरने लगे थे। ऐसे विक्षुब्ध वातावरण में धर्म एवं ईश्वर का आश्रय आवश्यक था। धर्म एवं धार्मिक कृत्यों में पुन: आस्था का संचार करने के लिए उस काल में श्रीगुरु नानकदेव जी, संत रविदास जी, स्वामी विवेकानन्द, जैसे महान् सन्त एवं उद्धारक सन्त पैदा हो चुके थे। ऐसी कठिन परिस्थितियों में लोग कल्याण की भावना से प्रेरित होकर पण्डित देवी दयालु जी ने पंचाँग दिवाकर नामक तिथि पत्रिका को क्रमवद्ध श्रृंखला प्रतिवर्ष छापने का शुभ संकल्प किया ।

"प्राचीन परम्पराओं का प्रतीक-पंचाँग दिवाकर"


(ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य )

सामान्य लोगों में भारतीय परम्पराओं एवं संस्कारों के प्रतीक पर्व-त्यौहारों के प्रति सजग एवं उत्साह का संचार करने के लिए पंचाँग जैसी धर्म परायण पत्रिकाओं की अत्यन्त आवश्यकता थी । लगभग सभी दिव्य देवी, देवताओं, महाविद्या, श्री राम, कृष्ण, बुद्ध आदि अवतारों के जन्मोत्सवों तथा श्री गुरु नानकदेव, गुरु शंकराचार्य, गुरु अर्जुन देव आदि गुरुओं के अवतार दिवस व प्रादेशिक मेलों आदि का विवरण पंचाँग में रहता है। पंचाँग दिवाकर में संक्रान्ति, पूर्णिमा, अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, अमावस आदि तिथियां, संवतसर-फल, पक्ष, विभिन्न ऋतुओं का वर्णन, जन्मदिन, मुण्डन, गृह निर्माण, गृह प्रवेश, व्यवसाय, विवाह, मृतकादि संस्कार आदि शुभ मुहूर्त्ती का विवरण मिलता है।
इसके अतिरिक्त ग्रहों के आधार पर जातक की धार्मिक, व्यक्तिगत, आर्थिक, व्यवसायिक, गृहस्थ सम्बन्धी समस्याओं एवं समाधान व राजनैतिक गतिविधियाँ इत्यादि दिवाकर पंचाँग में वर्णित रहती है । इस प्रकार लोगों को अपनी प्राचीन परम्पराओं, पर्व-त्यौहारों एवं संस्कृति से जोड़ने का कार्य पंचाँग करता है। भारतीय हिन्दु समाज के सभी संस्कार जैसे - विवाह, पुंसवन, मुण्डन, विवाह, अन्त्येष्ठी आदि संस्कारों व व्रतानुष्ठान आदि कृत्यों में संकल्प का विशेष महत्त्व है। संकल्प में संवत्, मास, पक्ष, तिथि, वार, माता-पिता के नाम गोत्र आदि का विवरण अवश्य होता है। जिसके लिए वर्तमान प्रामाणिक पंचाँग की आवश्यकता होती है। धर्म-परायण लोगों के लिए पंचाँगदिवाकर का आगमन प्रकाश-स्तम्भ साबित हुआ है। ‘पंचाँग दिवाकर' के प्रवर्त्तक हमारे पितामह पूजनीय पण्डित देवी दयालु ज्योतिषी जी का जन्म अविभाजित भारत (पंजाब) के मुख्य नगर लाहौर में 21 अप्रैल सन् 1839 ईसवी को धर्म-परायण, शाण्डिल्य गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ। उन्होंने ज्योतिष की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता श्री रामजी दत्त तथा अपने दादा पण्डित चन्द्रमिश्र से प्राप्त की थी। प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात् सन् 1861 से 1866 ई० के मध्य उन्होंने गणित, फलित व गणित ज्योतिष की सैद्धान्तिक शिक्षा वाराणसी (काशी) में ग्रहण की । तदुपरान्त काशी से वापिस लाहौर लौटकर अपने पिता जी के सान्निध्य में ज्योतिष का कार्य व्यवसायिक तौर पर किया तथा ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान, अनुभव एवं योग्यता समुचित रूप से प्राप्त की। फिर सन् 1875 ई० अर्थात् वि. संवत् १९३२ में श्रीपंचाँग दिवाकर नाम से पंचाँग पत्रिका के लेखन एवं प्रकाशन का श्रीगणेश किया।

उपलब्धियां (Achievements)

पंचांग में प्रतिपादित तिथि, नक्षत्र, ग्रहादि की प्रामाणिक गणित, मुहूर्त्त, ग्रहणादि ज्योतिष विषयों एवं सटीक भविष्यवाणियों के कारण 'पंचाँग दिवाकर' पूर्वी एवं पश्चिमी पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली एवं जम्मूकश्मीर आदि राज्यों में विशेष रूप से लोकप्रिय होने लगी थीं । पण्डित देवी दयालु जी द्वारा संचालित पंचाँग दिवाकर व मुफीद आलम जन्त्री उर्दू में विषय सामग्री एवं पण्डित जी की विद्वता से प्रभावित होकर तत्कालीन काश्मीर के राजाधिराजा श्री हरिसिंह जी द्वारा उन्हें सन् 1916 ई० में सुनहरी गलीचे, वस्त्र, गड्ग एवं सुवर्ण मोहरें प्रदान करके अपने राजदरबार में सम्मानित किया गया । तदुपरान्त पण्डित देवी दयालु जी की ख्याति, उत्कृष्ट पंचाँग व सटीक भविष्यवाणियों के कारण देश के विभिन्न प्रान्तों में व्याप्त होने लगी थी। पण्डित जी के दोनों सुयोग्य लड़के पण्डित मोहन लाल व पण्डित शिवराम दत्त भी पंचाँग दिवाकर, मुफीद आलम जन्त्री उर्दू व तिथ-पत्रिका गुरुमुखी के सम्पादन व प्रकाशन के कार्य में पूरी योग्यता से सहयोग करने लगे थे। सन् 1921 ई० में पण्डित जी के स्वर्गारोहण के पश्चात् उनके दोनों लड़कों (पं. मोहन लाल जी ( हमारे पितामह) व पं. शिवराम जी) ने भी पंचाँग व जन्त्री में सूक्ष्म ग्रहगणित एवं प्रसिद्ध भविष्यवाणियों के कारण विशेष ख्याति प्राप्त की। लार्ड किचनर के सम्बन्ध में तथा ब्रिटिश प्रशासन काल में सरकार के विरूद्ध की गई कुछ सटीक भविष्यवाणियों के कारण सन् 1935-36 ई० में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा हमारी जन्त्री / पंचाँग के विरूद्ध द्वेषपूर्वक भावना से निषेधाज्ञा भी जारी की थी । जोकि तत्कालीन गणमान्य लोगों के अनुरोध स्वरूप वापिस ले ली गई । परिणामस्वरूप हमारी पंचाँग दिवाकर व मुफीद आलम जन्त्री उर्दू, पंजाबी, हिन्दी पाठकों के मध्य और भी अधिक लोकप्रिय होने लगी। राष्ट्रीयता की भावना से युक्त अनेकों प्रशस्ति पत्र भी हमें प्राप्त हुए जोकि तत्कालीन जन्त्री / पंचाँगों में उल्लिखित हैं। हमारे पितामहों ने ज्योतिष सम्बन्धी अनेकों पुस्तकों का भी लेखन व मुद्रण किया था। जिसमें ज्योतिष रत्नाकर, तनुभाव, धनभाव, सहजभाव, सुतभाव, स्त्री भाव, कर्मभाव, वर्षफल चन्द्रिका, विवाह पद्धति (हिन्दी), आयना किस्मत उर्दू - चारों भाग, आयना फलक, योगासन व प्राणायाम, इल्म उन्सफ, लग्न - आफताब, इल्म ख्वाब आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। हमारे पितामह के स्वर्गारोहण के पश्चात् सन् 1943 के पश्चात् हमारे पूज्य पिता पण्डित चून्नी लाल व चाचा पण्डित रामसरणदास व पण्डित चिमन लाल जी द्वारा भी पंचाँग दिवाकर व जन्त्री उर्दू व तिथपत्रिका पंजाबी के संपादन व संचालन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सन् 1947 ई० को भारत विभाजन के पश्चात् हमारे पिता पंडित चून्नी लाल जी परिवार के जालन्धर (पंजाब) में आकर पंचाँगदिवाकर, मुफीद आलम जन्त्री व पंजाबी तिथ - पत्रिका लेखन व प्रकाशन कार्य सफलतापूर्वक करते रहे। उन्होंने भी धर्म एवं ज्योतिष सम्बन्धी पुस्तकों का योगदान किया है। जिनमें लक्ष्मी शक्ति, मनुष्य जीवन का रहस्य, सरिश्ता तकदीर (दो भाग), प्रश्न आफताब, गायत्री शक्ति, मन्त्र - शक्ति, इल्म केरल, श्रीदुर्गासप्तशती विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सन् 1970 ई० में पूज्य पिता एवं चाचा जी के आकस्मिक निधन के पश्चात् पंचाँग व मुफीद आलम, तिथिपत्रिका गुरूमुखी व ज्योतिष सम्बन्धी अन्य पुस्तकों के लेखन एवं छपवाने का कार्य मैं स्वयं तथा अपने दोनों सुयोग्य पुत्रों (चिं. विवेक शर्मा एवं चिं. पंकज शर्मा) के सहयोग से गत चवालीस (44) वर्षों से पंचाँग/ जन्त्री, कालदर्शक पंचाँग, लघुपंचाँग दिवाकर तथा अन्य ज्योतिष एवं धर्म सम्बन्धी पुस्तकों का सफलतापूर्वक प्रकाशन करते आ रहे हैं, और आशा है, ईश्वर की कृपा से और सुयोग्य पाठकों की सद्भावनाओं एवं सहयोग से भविष्य में भी पंचाँग-जन्त्री एवं ज्योतिष सम्बन्धी उपयोगी पुस्तकों के लेखन व प्रकाशन कार्यों में समर्पित बने रहेंगे। पंचाँग प्रवर्त्तक मशहूर आलम पण्डित देवी दयालु जी से लेकर आजतक की दीर्घावधि (138 वर्ष) में हमारे पंचाँग दिवाकर, मुफीद आलम जन्त्री (उर्दू-हिन्दी), तिथि पत्रिका गुरूमुखी व अन्य प्रकाशनों (आयना किस्मत, सरिश्ता तकदीर, प्रश्न आफताब, शिव मन्त्रावली, ज्योतिष तत्त्व ( तीन भाग), सुतभाव प्रकाश आदि) को जो विश्वव्यापी ख्याति प्राप्त हुई है । वह हमारे सुविज्ञ पाठकों से छिपी नहीं है।

निवेदक - पण्डित पन्ना लाल ज्योतिषी, पंचाँगकर्ता